जिंदगी गुजर रही है, इम्तिहानों के दौर से, एक ज़ख्म भरता नही, और दूसरा आने की जिद करता है।

नजरों से देखो तो आबाद हैं हम, दिल से देखो तो बर्बाद हैं हम, जीवन का हर लम्हा दर्द से भर गया है, फिर कैसे कह दें आज़ाद हैं हम।

जिंदगी से शिकवा नहीं कि उसने गम का आदी बना दिया, गिला तो उनसे है जिन्होंने रोशनी की उम्मीद दिखा के दिया ही बुझा दिया।

चले जायेंगे एक दिन तुझे तेरे हाल पर छोड़कर, कदर क्या होती है, ये तुझे वक्त बताएगा।

मेरी चाहत ने उसे खुशी दे दी, बदले में उसने मुझे खामोशी दे दी, खुदा से दुआ मांगी मरने की तो, उसने भी तड़पने के लिए जिंदगी दे दी।

मंजिल भी उसी की थी रास्ता भी उसी का था, एक हम अकेले थे, काफिला भी उसी का था, साथ साथ चलने की कसम भी उसी की थी और रास्ता बदलने का फैसला भी उसी का था।

जीना चाहा तो जिंदगी से दूर थे हम, मरना चाहा तो जीने को मजबूर थे हम, सर झुका कर कुबूल कर ली हर सजा, बस कसूर इतना था कि बेकसूर थे हम।

मैंने कहा रंगो से इश्क़ है मुझे, फिर जमाने ने हर रंग दिखाया मुझे।

इश्क़ खुदकुशी का धंधा है, “अपनी ही लाश अपना ही कंधा है”

शिकवा करूं भी तो करूं किस से, दर्द भी मेरा, और दर्द देने वाला भी मेरा।