आज कल उसे मेरी कमी सताती नहीं,
लगता है किसी और ने पूरी कर दी.
पहले अपनापन दिखाते हैं
फिर दूरियाँ बनाते हैं,
मतलब से करते हैं बात और
कहते हैं हम तुम्हें बहुत चाहते हैं।
हर वक़्त मिलती रहती है मुझे
अंजानी सी सजा
मैं कैसे पुछू तकदीर से
मेरा कसूर क्या है…
ना रास्तों ने साथ दिया
ना मंजिल ने इंतजार किया
मैं क्या लिखूं अपनी जिंदगी पर
मेरे साथ तो उम्मीदों ने भी मज़ाक किया!
कुछ अजीब सा चल रहा है ये वक्त का सफर,
एक गहरी सी खामोशी है खुद ही के अंदर…
कुछ नही है कहने को
बस अब दर्द बचा है सहने को।
वो कभी डरा ही नही मुझे खोने से
वो क्या अफसोस करेगा मेरे ना होने से
मोहब्बत का दर्द दिल में छुपाया बहुत है,
सच कहुँ उसकी मोहब्बत ने रुलाया बहुत है।
वैसे ही कहदो तुम्हारे काबिल नहीं,
औकात के ताने क्यों देते हो.
इंसान भी तो इसता है,
ज़हर डालकर लफ़्ज़ों में.
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