ए नसीब ज़रा एक बात तो बता
तू सबको आज़माता है
या मुझसे ही दुश्मनी है
तुम्हे टूट कर चाहते -चाहते
हम खुद से ही टूट गए
जो तुम बोलो बिखर जाऐंगे जो तुम चाहो संवर जाऐंगे मगर ये टूटना-जुड़ना हमें तकलीफ बहुत देता है
इतना क्यों
सिखाए जा रही हो ज़िन्दगी,
हमें कौनसी सदियाँ गुज़ारनी है यहाँ।
हाल मीठे फलों का
मत पूछिए साहब
रात दिन
चाकू की नोंक पे रहते है।
तारे और इंसान
में कोई फर्क नहीं होता,
दोनो ही किसी की ख़ुशी के लिऐ खुद को तोड़ लेते हैं।
अगर तुमसे कोई पूछे बताओ ज़िन्दगी क्या है, हथेली पर जरा सी राख़ रखना और उड़ा देना।
उड़ जायेंगे
तस्वीरों से रंगो की तरह हम,
वक़्त की टहनी पर हैं परिंदो की तरह हम।
ज़िन्दगी का आइना
जब भी उठाया करो,
पहले खुद देखो फिर औरों को दिखाया करो।
कितना मुश्किल है
मोहब्बत की कहानी लिखना
जैसे पानी पर, पानी से, पानी लिखना….
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