मुझे तेरा साथ जिंदगी भर नहीं चाहिए बल्कि जब तक तू साथ है जिंदगी चाहिए।

गुफ्तगू तुझसे कभी यूँ भी कर लेते है हम ही कह देते हैं हम ही सुन लेते हैं 

इश्क है या इबादत अब कुछ समझ नहीं आता एक खुबसूरत ख्याल हो तुम जो दिल से नहीं जाता

अच्छा लगता है तुम्हारे लफ़्ज़ों मैं खुदको ढूंढना इतराती हूँ, मुस्कुराती हूँ और तुम मैं ढल सी जाती हूँ

शब्दों के इत्तेफाक़ में यूँ बदलाव करके देख , तू देख कर न मुस्कुरा , बस मुस्कुरा के देख

चलो मर जाते हैं तुम पर, बताओ दफनाओगे अपने सीने में ?

वो इत्र की शीशियां बेवज़ह इतराती हैं खुद पे, मैं तो तेरे ख़्यालों से ही महक जाती हूं

बड़ी बरकत है तेरे इश्क़ में, जब से हुआ है बढ़ता ही जा रहा है

तलब है कि तुम मिल जाओ हसरत ये कि ज़िन्दगी भर के लिए